छत्तीसगढ़ के पावन धरा के सिद्ध शक्तिपीठों में मां समलेश्वरी रखती है प्रमुख स्थान जिला उप मुख्यालय चांपा में विराजती मां आदिशक्ति समलेश्वरी
(संवाददाता लखन देवांगन / हरी देवांगन
जिला उप मुख्यालय चांपा,यूं तो देश के कई राज्यों के कई स्थानों पर सिद्ध शक्तिपीठ भक्तों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र के रूप में स्थापित हो चुके है, जिसमें छत्तीसगढ़ के जिला जांजगीर चांपा के चांपा नगर को कोसा कासा कंचन की नगरी के नाम से परिभाषित किया जाता है यह नगर धातु शिल्पकारो की पहचान पर ही नहीं बल्कि यहां उड़ीसा के संबलपुर से लाकर मां के प्रतिरूप के प्राण प्रतिष्ठा के बाद सिद्ध शक्तिपीठ के नाम पर अधिक लोकप्रिय समझा जाता है,नगर के देवांगन मोहल्ला में आज से लगभग 80-90 साल पहले मां समलेश्वरी मंदिर के स्थापना का बीड़ा उठाया गया था,मां समलेश्वरी के स्थापना को लेकर एक नहीं अनेकों किवदंती आज हमारे सामने देखने सुनने को मिलता है, जिसमें एक किवदंती यह भी है कि चांपा राजघराने के द्वारा उड़ीसा राज्य के संबलपुर में प्रतिष्ठित मां समलेश्वरी के मूर्ति के प्रतिरूप को मन मंदिर में सजो कर से चांपा में भी मां के मूर्ति सहित मंदिर का स्थापना की बात बताई जाती है,इसी को यदि आधार मानकर चला जाए तो यह सत्य है कि जब से मां समलेश्वरी के मंदिर का स्थापना हुआ है उस वक्त से लेकर आज काफी कुछ परिवर्तन के बाद भी यदि नहीं बदला है तो मां के दरबार में पहुंचकर मनौती मांगने से लेकर पूर्ण होने के उपरांत भक्त सहित परिजनों के आगमन एवं मनोकामना ज्योति कलश स्थापना आज भी बदस्तूर चल रहा है मां के दरबार से मनोकामना प्राप्ति करने वाले अनेकों भक्त बताते हैं कि सच्ची श्रद्धा भक्ति के साथ मां के दरबार में शीश झुकाकर प्रार्थना करने के बाद मां भक्तों की पुकार को सुनकर मनौती पूर्ण करने के लिए मां की प्रतिष्ठा भक्तों के मन में रचा बसा हुआ है,भक्तों का विश्वास है कि मां समलेश्वरी महाशक्ति काली का प्रतिरूप माना जाता है,जब से मां भगवती का प्राण प्रतिष्ठा हुआ है तब से निरंतर भक्तों की संख्या में दिन-प्रतिदिन जिस तरह से इजाफा दर्ज किया जा रहा है, वह अपने आप में अविश्वसनीय और अकल्पनीय है, जांजगीर-चांपा जिला ही नहीं बल्कि आसपास के दिगर जिलो से सैकड़ों हजारों की संख्या में दिन प्रतिदिन भक्त यहां आकर मत्था टेकने के बाद मनोकामना मांग कर वापस जाते हैं, तदुपरांत मनोकामना पूर्ण होने के बाद भक्त पुनः मां के दरबार में उपस्थित होना नहीं भूलते,दिन प्रतिदिन मंदिर में पहुंचने वालों की संख्या यूं तो कभी कम नहीं होती पर विशेषकर वर्ष में दो बार आने वाला नवरात्रि के दिनों में यह पवन शक्ति पीठ किसी तीर्थ यात्रा के परिदृश्य से परिपूर्ण हो जाता है..